भारत की औसत ग्रोथ की बात करें तो बीते 3 दशकों से यह काफी अच्छी है। हमारा देश इकोनामिक पावर हाउस के रूप में सामने आया है। भारत की इसी उपलब्धि ने भारतीय निवेशकों और एंटरप्रेन्योर्स के लिए निवेश और आगे बढ़ने के बहुत से चांस ग्रो किए हैं । हालांकि अभी भी विशेषज्ञ इस बात की सलाह देते हैं कि निवेश का फैसला बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। जिसका अर्थ है पहले आपको बढ़ते वैश्विक अवसरों को अच्छी तरह से जान लेना चाहिए और अपने पोर्टफोलियो को इस तरह से बनाना चाहिए, ताकि उसे घरेलू झटको से बचाया जा सके और वैश्विक निवेश के अवसरों का फायदा भी उठाया जा सके।
आइए जानते हैं एक्सपोर्ट के अनुसार किन कारणों से ग्लोबल इन्वेस्टमेंट करना चाहिए?
Show Contents
ग्लोबल इन्वेस्टमेंट के द्वारा निवेशक को बेंच मार्क से अच्छा रिटर्न जनरेट करने का मौका मिलता है–
विशेषज्ञों के अनुसार मार्केट कैपिटलाईजेशन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस वर्ष टॉप ग्लोबल कंपनियों की लिस्ट में भारत की मात्र तीन कंपनियां शामिल है, यह कंपनियां MSCI वर्ल्ड इंडेक्स में भी शामिल हैं। नॉमिनल GDP के दृष्टिकोण से देखा जाए तो विश्व में भारत का जीडीपी में से शेयर मात्र 3 फ़ीसदी है जिसका अर्थ है भारतीय निवेशक अभी भी 97% ग्लोबल अवसरों से बाहर है।
ग्लोबल इन्वेस्टमेंट की वजह से इन्वेस्टर के इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को मिल सकती है बढ़त:
निवेश के पोर्टफोलियो के लिए सही तरीके से फैसले लेने से पहले निष्पक्ष होना बहुत जरूरी होता है ताकि निवेशक सभी अफसरों का अच्छी तरह से आकलन कर सके इसी वजह से ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बढ़त दे सकते हैं निवेशक के निवेश पोर्टफोलियो को।
रुपए दूसरे देशों की करेंसी की अपेक्षा कमजोर है;
आंकड़े बताते हैं कि भारत जैसी इमर्जिंग अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी हमेशा विकसित देशों जैसे कि यूके, यूएस आदि की अपेक्षा काफी कमजोर रहती है । आने वाले वर्षों में भी बड़ी करेंसी के मुकाबले रुपए कमजोर ही होगा इसीलिए वैश्विक निवेश काफी फायदेमंद हो सकता है।
वर्ष 2012 से अब तक औसत महंगाई का अंतर 4% है। पिछले कुछ समय में अमेरिका में पर्याप्त लिक्विडिटी की वजह से यह अंतर कम हुआ है, लेकिन ऐसी उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह अंतर दोबारा बढ़ सकता है। यही कारण है कि डॉलर में मूल्य वर्ग के फाइनेंशियल असेट्स रखने की वजह से निवेशक अपने निवेश पोर्टफोलियो को मजबूत कर सकते हैं।